ध्रुव तारा की जानकारी – Dhruv tara information Hindi

North Star Information in Hindi : क्या आपको मॉम है ध्रुव तारा किसे कहा जाता है ? ध्रुव तारा कब दिखाई देता है? ध्रुव तारा की कहानी क्या है? ध्रुव तारा किस दिशा में रहता है? ध्रुव तारा किस दिशा को दर्शाता है? ध्रुव तारा का मतलब क्या होता है? हम, आपको इस लेख में druv तारा से जुडी कुछ रोचक बातें ( ध्रुव तारा की जानकारी ) बताने जा रहे है. साथ में आपके ध्रुव तारा के कई प्प्रश्नों के जवाब भी मिल जायेंगे. जैसे की short story of dhruva tara in hindi, dhruv tara location, where is the north star tonight, dhruv tara story in hindi.

वैसे तो आपने class 6, 7 या फिर कक्षा 8 -9 में कही ना कही अपने सौरमंडल के ग्रह के बारे में पढ़ा होगा. और इसमे ध्रुव तारा के बारे में भी पढ़ा होगा. वैसे तो हमारी समझ में ध्रुव तारा सिर्फ एक तारा ही है. लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो ध्रुव तारा के बारे में आपको कुछ रोचक तथ्य मिल जायेंगे. जो HindiHelpGuru ने यहाँ बताये है.

ध्रुव तारा की जानकारी

हमारी पृथ्वी की दो प्रमुख गतियाँ हैं। यह एक विशाल कक्षा में एक वर्ष में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करती है। पृथ्वी की धुरी इस कक्षा के समतल के साथ लगभग 67 अंशों का कोण बनाती है या इस समतल के लंब के साथ 23 अंशों का कोण बनाती है।

पृथ्वी की दूसरी गति है-धुरी-परिक्रमा, जो वह एक दिन में पूरी करती है। पृथ्वी की इस धुरी-परिक्रमा के कारण पूरा खगोल हमें 24 घंटों में एक परिक्रमा पूरी करता दिखाई देता है और पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण तारों की पृष्ठभूमि में सूर्य हमें सरकता दिखाई देता है या प्रतिदिन तारे हमें चार मिनट पहले उदित या अस्त होते दिखाई देते हैं। यही कारण है कि ऋतुओं के अनुसार आकाश में तारे अपना स्थान बदलते रहते हैं।

Dhruv tara information Hindi

Dhruv tara information Hindi me jankari.

पृथ्वी की धुरी का उत्तरी सिरा खगोल के एक निश्चित बिंदु की ओर निर्देश करता है, इसलिए खगोल में उस बिंद के पास यदि कोई तारा है तो वह सालभर हमें लगभग एक ही स्थान पर स्थिर दिखाई देगा। और उस बिंद के आसपास के तारे हमें उसकी परिक्रमा करते दिखाई देंगे।

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ध्रुव तारा किसे कहा जाता है ?

खगोलीय उत्तरी ध्रुव के पास एक तारा है और उसे हम धूवतारा कहते हैं। पृथ्वी के विषुववृत्त के उत्तर में हम जितने ऊँचे अक्षांश में होंगे, ध्रुवतारा हमें उत्तरी आकाश में क्षितिज के उतने ही ऊपर दिखाई देगा। यदि हमारे स्थान का उत्तरी अक्षांश 400 है, तो उत्तरी आकाश में ध्रुवतारा भी हमें क्षितिज के 400 ऊपर दिखाई देगा। और ऐसे स्थान में ध्रुवतारे के आसपास के तारे हमें इसकी परिक्रमा करते दिखाई देंगे। इन्हें परिधुव तारे कहते हैं।

ध्रुव तारा किस दिशा में रहता है?

उत्तरी भारत से धूव तारे को स्पष्ट देखा जा सकता है। सप्तर्षि के तारे इसकी परिक्रमा करते दिखाई देते हैं, लेकिन रात-भर उन्हें हम नहीं देख सकते। उत्तरी यूरोप में ध्रुवतारा अधिक ऊँचाई पर रहता है और सप्तर्षि के तारों को रात-भर देखा जा सकता है। उत्तरी ध्रुव पर धूवतारा ठीक सिर के ऊपर (शिरोबिंदु पर) दिखाई देगा।

ध्रुव तारा की कहानी क्या है?

ध्रुवतारा और बालक ध्रुव की कथा से सभी भारतीय परिचित हैं। फिर भी यहाँ short में dhruv tara की कहानी आपके लिए राखी गयी है.

प्राचीनकाल की बात है जब सभी देवतागण पृथ्वी पर भ्रमण किया करते थे।

उस समय पृथ्वी के एक हिस्से में राजा उत्तानपाद का राज हुआ करता था। उनकी दो पत्नियाँ थी. एक सुनीति और दूसरी सुरुचि। उत्तानपाद के दो बेटे थे. सुनीति से ध्रुव और सुरुचि से उत्तम। सुनीति बड़ी रानी थी लेकिन उत्तानपाद को सुरुचि से अधिक प्रेम था। एक बार जब राजा उत्तानपाद ध्रुव को अपनी गोद में लेकर खिला रहे थे तभी सुरुचि वहां पहुंची. उसने ईर्ष्या से ध्रुव को राजा की गोद से नीचे उतार दिया और कहा राजा की गोद में वही सिर्फ बालक बैठेगा जो मेरी कोख से उत्पन्न हुआ हो।

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बालक ध्रुव को गुस्सा आ गया और वह भागते हुए अपनी माँ सुनीति के पास पहुँचा और सारी बात बताई।

सुनीति बोली बेटा तेरी सौतेली माँ सुरुचि से अधिक प्रेम के कारण तुम्हारे पिता हम लोगों से दूर हो गए है. तुम भगवान को ही अपना सहारा बनाओ। माता के वचन से ध्रुव को कुछ ज्ञान उत्पन्न हुआ और वे पिता का घर छोड़ कर चले गए।

रास्ते में ऋषि नारद से उनकी भेंट हुई. नारद ने बालक ध्रुव को समझाया कि वे घर लौट जाए लेकिन ध्रुव नहीं माना तब नारद ने ध्रुव के दृढ़ संकल्प को देखते हुए उसे तंत्र-मन्त्र की दीक्षा दी और वहां से चले गये।

इस तरह बालक ध्रुव यमुना नदी के तट पर जा पहुंचा और भगवान नारायण की तपस्या आरम्भ कर दी।

ध्रुव की तपस्या का तेज तीनों लोकों में फैलने लगा और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ की ध्वनि वैकुंठ में भी गूंज उठी। बालक ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान नारायण भी योग निद्रा से उठ बैठे और ध्रुव को दर्शन देने के लिए प्रकट हुए।

नारायण बोले हे, राजकुमार तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न होकर मैं तुम्हे वह लोक प्रदान कर रहा हूँ जिसके चारों ओर ज्योतिष चक्र घूमता है और जिसके आधार पर सभी ग्रह नक्षत्र भ्रमण करते है। प्रलयकाल में भी जिसका नाश नहीं होगा। सप्तऋषि भी नक्षत्रों के साथ जिसकी प्रदिक्षा करेंगे तुम्हारे नाम पर वह लोक ध्रुव कहलायेगॉ। इस लोक में तुम छत्तीस सह्त्र वर्ष तक तुम पृथ्वी पर शासन करोगे और समस्त प्रकार के सर्वोत्तम ऐश्वर्य भोग कर अंत समय में तुम मेरे लोक को प्राप्त करोगे। बालक ध्रुव को इस तरह वरदान देकर नारायण वैकुंठ लौट गए।

नारायण के वरदान के स्वरुप बालक ध्रुव समय पाकर ध्रुव तारा बन गया। आज भी आसमान में ध्रुवतारा देखा जा सकता है जिसके चारों तरफ गृह-नक्षत्र भ्रमण करते है।

ध्रुव का अर्थ क्या होता है?

जैसे आपने ध्रुव की कहानी पढ़ी. वैसे ही इसके नाम का अर्थ होता है. ध्रुव का अर्थ होता है एक ही जगह पर स्थिर रहनेवाला. एक ही जगह से स्थानांतरित ना होनेवाला.

ध्रुव तारा की पहचान आसान है. लिकिन अगर आप एक science छात्र होने के नाते पढ़ रहे है तो आपके लिए ध्रुव तारे के बारे में details से जानकारी होना आवश्यक है। तारों की पहचान के लिए सप्तर्षिमंडल के तारों से ही अध्ययन आरंभ करना बेहतर होगा।

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सप्तर्षि मंडल क्या है? सप्तऋषि के नाम

आँखों से भी सप्तर्षि मंडल में लगभग सौ तारे देखे जा सकते हैं, परंत इनमें सात तारे अधिक स्पष्ट हैं। इसीलिए इन्हें सप्तर्षि कहते हैं। पाश्चात्य ज्योतिष में ये ‘बड़े भालू’ के तारे कहलाते हैं, क्योंकि इनसे जैसे-तैसे एक काल्पनिक भालू की आकृति बनती है। ऋग्वेद में इन तारो को ऋक्षा (रीछ या भालू) कहा गया है। बाद के साहित्य में इन्हें सप्तर्षि कहा गया। लेकिन ठीक किन सात ऋषियों को सप्तर्षि माना जाए, यह स्पष्ट नहीं है। महाभारत के अनुसार ये सात ऋषि हैं-मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, क्रतु, पुलस्त्य और वसिष्ठ।

आधुनिक पाश्चात्य ज्योतिष में सप्तर्षि के इन तारों को अल्फा (क्रत), बीटा (पुलह), गामा (पुलस्त्य), डेल्टा (अत्रि), इप्साइलोन (अंगिरा), जेटा (वसिष्ठ) और एटा (मरीचि), इन यूनानी अक्षरों से पहचाना जाता है। मध्ययुग के अरबी ज्योतिषियों ने इन सातों तारों को स्वतंत्र नाम दिए थे। इनमें से मिजार (वसिष्ठ) तथा उसकेसमीप के अलकोर (अरुंधती) तारों के नामों का अक्सर इस्तेमाल होता है।

ध्रुव तारा और सप्तऋषि मंडल का चित्र

ध्रुव तारा और सप्तर्षि मंडल की पहचान कैसे करे.
images by Google : ध्रुव तारा और सप्तर्षि मंडल की पहचान

धूवतारे को कैसे पहचाने?

पुरातन काल में सप्तर्षि के तारों को ऋक्षा’ नाम भले ही दिया गया हा, परंतु इनमें रीछ-जैसी कोई आकृति दिखाई नहीं देती। सामने के चार तारे एक चतुर्भुजाकृति बनाते हैं और शेष तीन तारे मुड़े हुए हैंडल-जैसे हैं। बहरहाल, यदि इन तारों की आकृति को उल्टा करके देखा जाए तो ये हमें हैंडलवाले एक बर्तन की आकृति-जैसे दिखाई देंगे।

चूंकि भारत से इन सप्तर्षियों को धूवतारे के नीचे क्षितिज के ऊपर देख पाना संभव नहीं है, इसलिए हैंडलवाला यह काल्पनिक बर्तन हमें उलटा ही दिखाई देगा। ऐसी स्थिति में सप्तर्षि के चतुर्भज के सामने के दो तारे क्रतु (अल्फा) और पुलह (बीटा) हैं : इनमें क्रतु नीचे है और पुलह ऊपर ।

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पुलह और ऋतु में से एक सीधी रेखा को क्रत की ओर आगे बढ़ाया जाए तो इन दो तारों की दूरी के पाँच गुना अंतर पर हमें द्वितीय कांतिमान का ध्रुवतारा दिखाई देगा। ध्रुवतारे को पहचानने का यही सबसे सुगम तरीका है.

सप्तर्षि का अत्रि (डेल्टा) तारा 3.6 कांतिमान का है। शेष छह तारे लगभग द्वितीय कांतिमान के हैं। आकाशगंगा के अन्य सभी तारों की तरह सप्तर्षि के तारे भी गतिशील हैं। क्रतु और मरीचि तारे एक दिशा में गतिशील हैं, तो शेष पाँच तारे विपरीत दिशा में। अतः आज से हजारों साल पहले सप्तर्षियों की स्थिति ठीक आज-जैसी नहीं थी और हजारों साल बाद यह आज-जैसी नहीं रहेगी।

सप्तर्षि-मंडल के वसिष्ठ तथा इसके समीप के अरुंधती तारे के बारे में विस्तृत रहस्य हैं। दूरबीन से सप्तर्षि-मंडल में कई नीहारेकाओं और मंदाकिनियों को भी देखा जा सकता है। इनमें से एक नीहारिवा (M97) हमसे लगभग 8000 प्रकाश-वर्ष दूर है, फिर भी यह हमारी आकाशगंगा में ही है। लेकिन सप्तर्षि-मंडल में दिखाई देनेवाली मंदाकिनियाँ हमारी आकाशगंगा के बाहर बहुत दूर हैं। उदाहरणार्थ, वसिष्ठ तारे के नजदीक दिखाई देनेवाली मंदाकिनी (M101) अरबों तारों की एक स्वतत्र योजना है। यह मंदाकिनी हमसे 80 लाख प्रकाश-वर्ष दर है। _ सप्तर्षि-मंडल के दो तारों की सहायता से धूवतारे को पहचानने का तरीका हम बता चुके हैं।

ध्रुव तारा के बारे में जानकारी

ध्रुवतारा सप्तर्षि-मंडल में नहीं बल्कि लघु सप्तर्षि-मंडल में है। भौतिक गुणधर्मों की दृष्टि से यह एक सामान्य तारा है। यह एक महादानव तारा है। इसका व्यास सूर्य के व्यास से 120 गुना अधिक है। ध्रुवतारे का सतह-तापमान 7000 सें. है। यह सैफियरी किस्म का चरकांति तारा है। इसका औसत कांतिमान 2.0 है।

ध्रुव तारा की स्थिति

पुराने आख्यानों में यकीन करके हम मान लेते हैं कि ध्रुवतारा अचल या स्थिर है और यह खगोल के ठीक उत्तरी ध्रुव पर है। पर यह सही नहीं है। ध्रुवतारा खगोलीय धूव-बिंद से करीब 1 दर है। यह तारा उस बिद् का चक्कर लगाता है। दरअसल, उस असली ध्रुव-बिंद के अधिक समीप एक अन्य तारा है, पर उसे हम दूरबीन से ही देख सकते हैं।

धूवतारे के बारे में दूसरी प्रमुख बात यह है कि यह एक अस्थायी ध्रुवतारा है। पृथ्वी की एक विशेष गति-अयन गति-के कारण इसकी धुरी डोलती रहती है। फलतः पृथ्वी की धुरी का उत्तरी सिरा (खगोल का वास्तविक उत्तरी धूव-बिंद) 26,000 वर्षों में एक चक्कर लगाता है। अतः आकाश का उत्तरी ध्रुव निरंतर बदलता रहता है.

पृथ्वी की धरी का उत्तरी सिरा खगोल के जिस बिंद की ओर निर्देश करता है वहाँ या उसके समीप कोई चमकीला तारा हो, तो उसे ही धूवतारा मान लिया जाता है। आज लघु सप्तर्षि मंडल के अल्फा तारे को ध्रुव तारे का यह सम्मान प्राप्त है, परंतु आज से करीब तीन हजार साल पहले, वेदों की रचना के समय, लघु सप्तर्षि मंडल का ‘बीटा’ तारा ध्रुवतारा था। अतः स्पष्ट है कि वैदिक काल का ध्रुवतारा आज का ध्रुवतारा नहीं है।

आज से करीब तीन हजार साल पहले लघु सप्तर्षि मंडल का ‘बीटा’ तारा ध्रुवतारा था, इसके लिए स्पष्ट सबत यह है कि अरबी ज्योतिष में इसे कुतुब-अल-शुमाली (उत्तर का तारा) कहते हैं। चीन में लघु सप्तर्षि के ‘बीटा’ तारे को ‘राज-नक्षत्र’ कहते थे। आज से कुछ हजार साल बाद कोई अन्य तारा ही धूवतारा कहलाएगा।

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ध्रुवतारे के एक ओर सप्तर्षि मंडल है, तो विपरीत दिशा में शर्मिष्ठा नक्षत्र-मंडल । भारत से सप्तर्षि के तारों को जब हम धृवतारे के ऊपर देखते हैं. तो शर्मिष्ठा के तारों को देख पाना संभव नहीं है, क्योंकि तब यह नक्षत्र-मंडल क्षितिज के नीचे होता है। हाँ, उत्तरी यूरोप के स्थानों से इन दोनों नक्षत्र-मंडलों को एक साथ देखा जा सकता है, क्योंकि ये दोनों मंडल कुछ देय से ध्रुव तारा की परिक्रमा करते है.

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