लोकतंत्र और महात्मा गांधी निबंध लेखन प्रतियोगिता : gandhi Jayanti : भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की जयंती 2 अक्टूबर 2013 को मनाई जायेगी. इस अवसर पर school , colleges में कई तरह के कार्यक्रम का आयोजन होगा. निबंध प्रतियोगिता, चित्र कला प्रतियोगिता, वक्तृत्व प्रतियोगिता का आयोजन होगा. इसलिए हम यहाँ सभी student के लिए Democracy and Mahatma Gandhi Essay Hindi – लोकतंत्र और महात्मा गांधी निबंध आपको दे रहे है. अगर आप गांधी जयंती की निबंध लेखन प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहे है तो आपको ये लेख मदद करेगा.
लोकतंत्र और महात्मा गांधी
यह आम धारणा है कि विश्व में सर्वप्रथम राजतंत्र का जन्म हुआ है और उसका विकसित रूप लोकतंत्र है। किन्तु भारतीय साहित्य और राजनीति में इसके विपरीत प्रमाण मिलते हैं, जिसके अनुसार भारत में सर्वप्रथम लोकतंत्र का जन्म हुआ और राजतंत्र उसका विकृत रूप है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सिद्धान्तों से ही देश में लोकतंत्र कायम है। उनके द्वारा बताये गये सत्य एवं अहिंसा के सिद्धान्त से ही विश्व शांति का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। विश्व के कई देशों के टुकडे़ हो गये हैं लेकिन गांधी के बताये मार्ग पर चलने के कारण ही हमारा देश आज भी अखण्ड है।
गांधीजी के राजनीतिक विचारों में लोकतंत्र के प्रति उनकी निष्ठा सर्वत्र विद्यमान है। किन्तु उन्होंने लोकतंत्र के सामाजिक उत्थान के पक्ष को महत्व दिया है। वे अभिजातीय लोकतंत्र तथा पंचवर्षीय मतदान की प्रणाली वाले औपचारिक लोकतंत्र के पक्ष मे नहीं है। उनके लोकतंत्र में एक ओर समाज के दलित वर्गो द्वारा कुलीन तथा पूंजीपति वर्गो के नियन्त्रण के विरूद्व राजनीतिक आन्दोलन की प्रेरणा मिलती है तो दूसरी ओर ऐसे आर्दश समाज की मांग, जिसमें व्यक्ति को स्वशासन का पूर्ण अवसर प्राप्त हो सके । गाँधीजी के सर्वोदयी उदारवादी लोकतंत्र में दलविहीन राजनीति के दर्शन होते हैं। गाँधीजी सर्वोदय तथा अंत्योदय की दृष्टि से ऐसे समतावादी समाज के समर्थक हैं जिसमें नेता तथा जनता एक ही धरातल पर सादगी एवं संयम से जनसेवा का कार्य करते रहें। वे लोकतंत्र को ’’मिलावटविहिन अहिंसा का शासन‘‘ मानते हैं। लोकतंत्र अर्थात् अहिंसा, व्यक्ति की आत्मशुद्वि या नैतिक उत्थान को लिए हुए हैं। राजनीतिक स्वशासन जिसमें अनेक पुरूषों तथा स्त्रियों का स्वाशासन अन्तर्निहित है।
Democracy and Mahatma Gandhi
गाँधीजी के विचारों से स्पष्ट होता है कि उनकी नजर में लोकतंत्र समाज के सभी वर्गो के समस्त भौतिक और आध्यात्मिक साधनों को सबकी भलाई के लिये संगठित करने की कला और विज्ञान हैं। उनका मानना है कि लोकतंत्र वह है जिसमें दुर्बल और सभी लोगों को समान अवसर प्राप्त हों लेकिन वे यह भी मानते है कि विश्व में ऐसा कोई भी देश नहीं हैं। गाँधीजी के चिन्तन में लोकतंत्र के प्रति स्वाभाविक निष्ठा प्रकट होती है क्योंकि उनकी विचारधारा में व्यक्ति को जो सम्मान प्राप्त है, वही लोकतंत्र का भी आधार है।
सर्वोच्च कोटि की स्वतंत्रता के साथ सर्वोच्च कोटि का अनुशासन और विनय होता है। अनुशासन और विनय से मिलने वाली स्वतंत्रता को कोई छीन नहीं सकता। संयमहीन स्वच्छंदता संस्कारहीनता की द्योतक है; उससे व्यक्ति की अपनी और पड़ोसियों की भी हानि होती है।
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गांधीजी का कहना था की कोई भी मनुष्य की बनाई हुई संस्था ऐसी नहीं है जिसमें खतरा न हो। संस्था जितनी बड़ी होगी, उसके दुरुपयोग की संभावनाएँ भी उतनी ही बड़ी होंगी। लोकतंत्र एक बड़ी संस्था है, इसलिए दसका दुरुपयोग भी बहुत हो सकता है। लेकिन उसका इलाज लोकतंत्र से बचना नहीं, बल्कि दुरुपयोग की संभावना को कम-से-कम करना है।
लोकतंत्र और हिंसा का मेल नहीं बैठ सकता। जो राज्य आज नाम मात्र के लिए लोकतंत्रात्मक हैं उन्हें तो स्पष्ट रूप से तानाशाही का हामी हो जाना चाहिए, या अगर उन्हें सचमुच लोकतंत्रात्मक बनना है तो उन्हें साहस के साथ अहिंसक बन जाना चाहिए। यह कहना बिलकुल अविचारपूर्ण है कि अहिंसा का पालन केवल व्यक्ति ही कर सकते हैं, और राष्ट्र – जो व्यक्तियों से बनते हैं – हरगिज नहीं।
गाँधीजी का कहना था कि अहिंसा और नैतिक शुद्धता में विश्वास न होने के कारण पश्चिम के राज्यों में नाममात्र का लोकतंत्र है, उनमें लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धान्तों के प्रति वास्तविक लगाव नहीं पाया जाता है। गाँधीजी प्रेम को लोकतंत्र का सच्चा आधार मानते है, उनके विचार में प्रेम लोकतंत्र के विकास में निर्णायक भूमिका निभाता है। इसके अलावा स्वयं व्यक्ति का अच्छा होना, अहिंसा व नैतिकता के नियमों का पालन आदि को भी वे लोकतंत्र के विकास में सहायक मानते हैं। गाँधीजी के इन विचारों से उन लोगों को छोडकर जिन्हें लोकतन्त्रिय शासन में विश्वास नहीं है, शायद ही कोई इन्कार कर सकता है। गाँधीजी के विचारों से यह भी स्पष्ट होता है कि पश्चिम में लोकतत्र के सफल न हो सकने का कारण संस्थाओं की पूर्णता उतनी ही है, जितनी सिद्धान्तों की अपूर्णता है। विशेष रूप से हिंसा और असत्य की उपयोगिता म विश्वास । लोकतंत्र उन गलत विचारों और आदर्शो से विकृत होता हैं। जो मनुष्यों का संचालन करते हैं यदि जनता ने शुद्ध अहिंसा के मार्ग को अपनाया तो लोकतंत्रवादी राज्य के ये दोष बहुत कम हो जायेंगे।
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गांधीजी के विचारो से प्रजातंत्र का सार ही यह है कि उसमें हर एक व्यक्ति उन विविध स्वार्थों का प्रतिनिधित्व करता है जिनसे राष्ट्र बनता है। यह सच है कि इसका यह मतलब नहीं कि विशेष स्वार्थों के विशेष प्रतितिधित्व करने से रोक दिया जाए, लेकिन ऐसा प्रतिनिधित्व उसकी कसौटी नहीं है। यह उसकी अपूर्णता की एक निशानी है।
गांधीजी मानते थे की जो व्यक्ति अपने कर्तव्य का उचित पालन करता है, उसे अधिकार अपने-आप मिल जाते हैं। सच तो यह है कि एकमात्र अपने कर्तव्य के पालन का अधिकार ही ऐसा अधिकार है, जिसके लिए ही मनुष्य को जीना चाहिए और मरना चाहिए। उसमें सब उचित अधिकारों का समावेश हो जाता है। बाकी सब तो अनधिकार अपहरण जैसा और उसमें हिंसा के बीज छिपे रहते है।
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यह तय है कि भारत के संविधान निर्माताओं ने गांधीजी के विचारों को संविधान के अन्तर्गत काफी हद तक समावेशित किया, लेकिन उसके क्रियान्वयन के लिए जिस प्रकार की सांस्थानिक, राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक स्प
महात्मा गांधी ने भारत में एक शक्तिशाली और स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आबादी के सभी वर्गों की सहभागिता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया था.उन्होंने लिखा है “ लोकतंत्र का सार वास्तव में विभिन्न वर्गों के लोगों के समस्त शारीरिक, आर्थिक और आध्यात्मिक संसाधनों को सर्व कल्याण के लिए जुटाने की कला और विज्ञान है।
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गाँधीजी ने विश्वास प्रकट किया कि लोकतंत्र का विकास, बल प्रयोग से नहीं हो सकता । लोकतंत्र की सच्ची भावना बहार से नहीं अपितु भीतर से उत्पन्न होती है। कानून पास करने से बुराइयां दूर नहीं की जा सकती, मूल बात तो यह है कि हृदय को बदला जाये । यदि हृदय बदले बिना व्यवस्थापन कर दिया जाये तो महत्वहीन होगा । कानून सदैव आत्मरक्षा के लिये बनाये जाने चाहिए यदि वे उन्नति और विकास को रोकते हैं तो वे बेकार हैं, कोई भी मानवीय कानून स्थायी रूप से व्यक्ति के लिए बाध्यकारी नहीं हो सकते।
आज के सन्दर्भ मे गाँधी के उपर्युक्त विचार सत्य प्रतीत होते हैं। निःसन्देह थोपा गया लोकतंत्र कभी भी स्थायी और सफल नहीं हो सकता । जब तक जनता स्वयं लोकतान्त्रिक भावना की आत्मानुभूति नहीं कर लेती, लेाकतंत्र केा प्रबल समर्थन नहीं मिल सकता। केवल निर्वाचन में खडा होने या मत देने के अधिकार से ही लोकतंत्र की सफलता को मापा नहीं जा सकता।
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पूछे जाने वाले प्रश्न
गांधीजी के जीवन में नमक मार्च का क्या महत्व है?
नमक मार्च अहिंसक प्रतिरोध और सविनय अवज्ञा के प्रति गांधी की प्रतिबद्धता का प्रतीक था, जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
गांधीजी के दर्शन ने अन्य लोकतांत्रिक आंदोलनों को कैसे प्रभावित किया?
गांधी के अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे नेताओं को प्रेरित किया, जिन्होंने उन्हें अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन में लागू किया।
भारत के लोकतांत्रिक सिद्धांतों के निर्माण में गांधीजी ने क्या भूमिका निभाई?
गांधी के न्याय, स्वतंत्रता और समानता के मूल्यों ने भारत के संविधान के प्रारूपण और देश की लोकतांत्रिक नींव को दृढ़ता से प्रभावित किया।